भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत का स्वप्नदर्शी अंतरिक्ष संस्था है। 1969 में विक्रम साराभाई के दूरदर्शी नेतृत्व में इस संगठन की स्थापना की गयी थी जो आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का गौरव बन चुका है। न केवल अपने देश के विकास में, बल्कि विश्वों के अंतरिक्ष अनुसंधान में भी इसरो का योगदान सराहनीय है।
इसरो के प्रयासों ने दूरदराज ग्रामीण इलाकों को टेलीमेडिसिन जैसी जीवनरक्षक सेवाएं उपलब्ध कराई हैं। कृषि, मौसम विज्ञान, आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपग्रहों की सूचना सार्वजनिक जीवन को बदल रही है। शिक्षा एवं संचार के क्षेत्र में भी इसरो के उपग्रहों ने क्रांति लाकर लोगो के जीवन तो आसान बनाया है।
गागन, नवीग, भूवन जैसे उपग्रह प्रणालियां इसरो की अभिनव क्षमताओं का प्रमाण हैं। चंद्रयान, मंगलयान जैसे मिशनों ने भारत को दुनिया के चुनिंदा अंतरिक्ष शक्तियों की कतार में खड़ा कर दिया है। इन मिशनों ने न केवल वैज्ञानिक खोजों में योगदान दिया, बल्कि देश के युवाओं में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति एक जुनून को जगाया है।
इसरो की सफलता सिर्फ तकनीकी प्रगति तक सीमित नहीं है। इसने आत्मनिर्भरता का एक मॉडल भी प्रस्तुत किया है। स्वदेशी रॉकेट और उपग्रह बनाने की क्षमता भारत को रणनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करती है जो अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।
आज भारतीय अंतरिक्ष का क्षितिज पर नए सितारे उग रहे हैं। पुन: प्रयोज्य वाहन, मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान, इंटरस्टेलर मिशन जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्य इसरो के भविष्य को दर्शाते हैं। इन लक्ष्यों को प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि उससे भी आगे बढ़कर अज्ञात अंतरिक्ष का पता लगाना ही इसरो का सपना है। इस सपने को साकार करने का जुनून निश्चित रूप से भारत को अंतरिक्ष के सबसे बड़े मंच पर स्थापित करेगा।
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Isro Chairman : इसरो की स्थापना
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की कहानी भारतीय स्वप्नशीलता और वैज्ञानिक दृढ़ता का एक उदाहरण है। इसरो की स्थापना सन 1962 में हुई थी, जब प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई के दूरदर्शी नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इंकोस्पर) की स्थापना हुई। कुछ वर्षों बाद, इसरो के रूप में विकसित होकर, भारत को अंतरिक्ष के अनंत ब्रह्मांड में ले जाने का मार्ग प्रशस्त किया।
1969 का वर्ष भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय था। 15 अगस्त को 1969 को, देश के पावन पर्व पर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का औपचारिक रूप से गठन हुआ। यहीं से भारत के अंतरिक्ष सपने को साकार करने का एक लंबा, गौरवशाली सफर शुरू हुआ।
इसरो के प्रारंभिक वर्ष चुनौतियों से भरा हुआ था। सीमित संसाधनों और तकनीकी अनुभव के बावजूद, इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने अथक परिश्रम और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। 1975 में, भारत का पहला उपग्रह “आर्यभट्ट” सोवियत संघ की मदद से अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। यह उपलब्धि भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने देश को वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर अंकित किया।
Isro Chairman : भारत का पहला स्वदेशी रॉकेट
1980 में, भारत ने अपना पहला स्वदेशी रॉकेट “एसएलवी-3” का परीक्षण किया। इसके बाद, इसरो ने लगातार अपनी रॉकेट और उपग्रह निर्माण क्षमता को मजबूत किया। आज, भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है जो अपने स्वयं के रॉकेट और उपग्रहों का निर्माण कर सकता है।
अब इसरो के पास महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं, जिनमें पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन विकसित करना, मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान करना और यहां तक कि मंगल ग्रह पर मानव भेजने का सपना भी शामिल है। इसरो के वैज्ञानिक और इंजीनियर लगातार नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं और अंतरिक्ष अन्वेषण के नए क्षितिज तलाश रहे हैं।
इनका सफर अब विशाल हो चुका है, जो भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में गौरवान्वित कर रहा है। भविष्य में भी, इसरो निरंतर नई ऊंचाइयों को छूएगा और भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।
Isro Chairman : इसरो के चेयरमैन की सूचि
Isro Chairman का सूचि का बड़ा है जो इस प्रकार है :
- डॉ. विक्रम साराभाई (1963-1972): भारतीय अंतरिक्ष के जनक के रूप में विख्यात, डॉ. विक्रम साराभाई ने 1963 में इसरो की स्थापन की। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में, भारत ने अपने पहले रॉकेट और उपग्रहों का विकास किया, जो अंतरिक्ष अन्वेषण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम रहा।
- प्रो. एम. जी. के. मेनन (जनवरी-सितंबर 1972): डॉ. साराभाई के असामयिक निधन के बाद, प्रो. मेनन ने लगभग नौ महीने तक अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इस दौरान, उन्होंने संगठन को स्थिरता प्रदान करने और डॉ. साराभाई के कार्यों को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया।
- प्रो. सतीश धवन (1972-1984): प्रो. धवन इसरो के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे, 12 वर्षों तक इस पद पर कार्यरत रहे। उनके कार्यकाल में, भारत ने अपने रॉकेट प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण विकास किया और आर्यभट्ट, भास्कर और रोहिणी जैसे कई उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया।
- प्रो. यू. आर. राव (1984-1994): प्रो. राव के नेतृत्व में, इसरो ने दूरसंचार, पृथ्वी अवलोकन और मौसम विज्ञान उपग्रहों के विकास पर अधिक ध्यान दिया। इन उपग्रहों ने भारत के संचार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- डॉ. के. कस्तूरीरंगन (1994-2003): डॉ. कस्तूरीरंगन के कार्यकाल में, इसरो ने चंद्रयान-1 मिशन की योजना बनाना शुरू किया, भारत का पहला चंद्र मिशन। इसके अलावा, उन्होंने इसरो के अनुसंधान और विकास गतिविधियों को विस्तृत किया और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग को बढ़ावा दिया।
- श्री जी. माधवन नायर (2003-2009): श्री नायर के नेतृत्व में, इसरो ने चंद्रयान-1 मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया, जिसने चंद्रमा की सतह पर एक प्रहारक उतारा। उन्होंने रक्षा अनुप्रयोगों के लिए इसरो की प्रौद्योगिकियों के उपयोग को भी बढ़ावा दिया।
- डॉ. के. राधाकृष्णन (2009-2014): डॉ. राधाकृष्णन ने मंगलयान मिशन की शुरुआत की, जिसमें भारत ने मंगल ग्रह की कक्षा में एक अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक स्थापित किया। उन्होंने विज्ञान शिक्षा और लोकप्रियकरण पर भी जोर दिया, जिससे युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि पैदा हुई।
- डॉ. शैलेश नायक (जनवरी 2015 – जनवरी 2015): डॉ. नायक ने श्री राधाकृष्णन के सेवानिवृत्त होने के बाद 12 दिनों तक अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इस दौरान, उन्होंने संगठन के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया।
- श्री ए. एस. किरण कुमार (2015-2018): श्री किरण कुमार ने इसरो के पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (आरएलवी) कार्यक्रम और गगनयान मिशन को आगे बढ़ाया, जो भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान मिशन होगा। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत किया और इसरो की वैश्विक पहुंच का विस्तार किया।
- श्री के. सिवन (2018-2022): श्री सिवन ने चंद्रयान-2 मिशन का नेतृत्व किया, जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में एक लैंडर और रोवर उतारने का प्रयास था। हालांकि लैंडिंग कठिन इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, मिशन ने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा एकत्र किया और भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण क्षमताओं को प्रदर्शित किया।
- श्री एस. सोमनाथ (2022-वर्तमान): श्री सोमनाथ वर्तमान में इसरो के अध्यक्ष हैं और ये तेज नजर रखते हैं। उन्होंने अगस्त 2023 में चंद्रयान-3 मिशन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में एक लैंडर और रोवर उतारने का दूसरा प्रयास था। वह 2024 में गगनयान मिशन के साथ मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं और पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहनों के विकास और इंटरस्टेलर मिशनों जैसे अन्य महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
इसरो के अध्यक्षों की सूची इस बात का प्रमाण है कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने उल्लेखनीय प्रगति की है। डॉ. विक्रम साराभाई जैसे दूरदर्शी नेताओं के मार्गदर्शन में, इसरो ने सैटेलाइट प्रौद्योगिकी विकसित की है, चंद्र और मंगल मिशन का नेतृत्व किया है, और अब मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की तैयारी कर रहा है। निस्संदेह, भविष्य में इसरो भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के वैश्विक मानचित्र पर एक प्रमुख बल के रूप में स्थापित करेगा।
Isro Chairman : वर्तमान इसरो चेयरमैन श्री एस. सोमनाथ
श्री सोमनाथ एक अनुभवी एयरोस्पेस इंजीनियर हैं, जिनका अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में 38 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने इसरो के विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों में काम किया है, जिसमें विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) शामिल है, जो लॉन्च वाहन प्रौद्योगिकी विकास का नेतृत्व करता है। उन्होंने पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो भारत का अब तक का सबसे सफल रॉकेट है।
इसरो ने अगस्त 2023 में चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में एक लैंडर और रोवर उतारने का प्रयास था, जो पहले कभी नहीं किया गया था। इस मिशन ने भारत को दुनिया का चौथा देश बना दिया, जिसने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन किया।
श्री सोमनाथ भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम के भविष्य के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण रखते हैं। वह 2024 में गगनयान मिशन के साथ मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा, वह पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहनों के विकास, इंटरस्टेलर मिशनों की खोज और अन्य कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।